सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर जहाँ गिरा था आदिशक्ति का सिर।

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सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर

सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर, उत्तराखंड के टिहरी जिले स्थित धनोल्टी हिल स्टेशन से लगभग 11 KM दूर और चंबा से लगभग 22 KM दूर एक पहाड़ी के ऊपर स्थित, कोहरे और धुंध से ढका हुआ तथा प्रचुर हरियाली और रंगीन फूलों के बीच, सुरकंडा माता का मंदिर स्थित है, जो एक परम शांतिपूर्ण धार्मिक स्थल है, यहाँ पर प्रतिदिन दूर दूर से माता के अनुयायी दर्शनों के लिये आते है।

सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर से गढ़वाल क्षेत्र का एक शानदार नजारा जो 360 डिग्री का सुन्दर दृश्य प्रदान करता है। उत्तर में स्थित, हिमालय के बर्फ से ढके हुऐ पहाड़ों को (स्पष्ट दिन पर) देखा जा सकता है। दूसरी तरफ, आपको ऋषिकेश और देहरादून की घाटीया दिखाई देगी। इस स्थान पर कई प्रकार के खूबसूरत फूल और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। साथ ही इस क्षेत्र में पश्चिमी हिमालय की विभिन्न प्रकार की अयाल प्रजातियों भी मिलती है। 

सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर  

सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर इस क्षेत्र का सबसे ऊंचा स्थान है, जो एक पहाड़ी की चोटी पर 3030 मीटर (9995 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है। कद्दुखल गाँव में स्थित समुद्र तल से 3030 मीटर की ऊँचाई पर स्थित सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर देखने के लिए एक अत्यंत सुंदर और धार्मिक स्थान है। यह मंदिर देवी के 51 शक्ति पीठो में से एक तथा अपने स्थापत्य चमत्कार और पौराणिक मान्यताओं एवं वाचाल परिवेश के लिए प्रसिद्ध है। 

यहाँ पर पर्यटक बस या कार से कद्दू खल (देवस्थली) तक जा सकते हैं जहां से मंदिर के लिये लगभग 2 किमी पैदल चलना पड़ता है। सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर मसूरी से लगभग 40 किमी और धनोल्टी से 11 किमी दूर स्थित है। यह एक अति महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। मंदिर से बर्फ की पर्वतमाला के व्यापक दृश्य दिखाई देते है जिन विशेष अनुभवो को आप कभी नहीं भूल सकते है।

सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर

सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर की विशेष मान्यता है जहां पर दर्शन करने से मनमांगी मुरादें पूरी होती हैं और कहीं न कहीं इसका अनुभव सभी भक्त करते है। इस मंद‍िर के बारे में यह विश्वास स्थापित हैं, की यहां एक बार के दर्शन मात्र से ही एक या दो नहीं बल्कि सात जन्‍मों के पापों से मुक्ति म‍िल जाती है। यह मान्‍यता है क‍ि सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर की कृपा से हमारा वर्तमान ही नहीं संवरता बल्कि हमारे द्वारा भूतकाल और प‍िछले जन्‍म के किये गये सारे पाप भी माफ हो जाते हैं। माता का यह मंद‍िर 51 शक्तिपीठों में से एक है। 

सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर से जुडी पौराणिक कथा 

हिन्दू पौराण‍िक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र प्रजापति दक्ष की पुत्री सती ने भगवान भोलेनाथ को अपने वर के रूप में चुना था। लेक‍िन प्रजापति दक्ष को माता सती का महादेव को चुनना स्वीकार्य नहीं था। एक बार राजा दक्ष ने शिव को अपमानित करने के लिये एक वैद‍िक यज्ञ का आयोजन क‍िया। 

उसने इस यज्ञ में भाग लेने के लिये सभी देवताओ को आमंत्रित क‍िया परन्तु अपने जमाता भगवान श‍िवजी को न‍िमंत्रण नहीं किया। तब भोलेनाथ के लाख समझाने के बावजूद भी देवी सती अपने प‍िता दक्ष के यज्ञ में शाम‍िल होने के लिये चली गईं। जहां दक्ष ने भगवान शिव के लिए सभी के सामने कई अपमान जनक टिप्पणीया की जिससे माता सती अत्‍यंत आहत हुईं।

इसके फलस्‍वरूप उन्‍होंने वहा उपस्थित यज्ञ कुंड में अपने प्राणो को त्‍याग दिया। जब भगवान शिव को माता सती के देह त्यागने का समाचार मिला तो वो अत्यंत दुखी एवं नाराज हो गए और उन्होंने दक्ष का वध कर उस यज्ञ को विध्वंश कर दिया। तब भगवान शिव सती माता के पार्थिव शरीर को अपने कंधे पर रखकर हिमालय की और चले गये। 

भगवान शिव को शोक ग्रस्त एवं दुखी देखकर सभी देवता चिंतित हो गये उन सब को यह भय था की भगवान शिव कही क्रोध में आकर सृष्टी का विनाश ना कर दे। तब भगवान शिव के क्रोध को शांत करने व उनके तांडव से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान श्रीहर‍ि ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काटकर 51 भागो में विभाजित कर दिया। माता सती के शरीर के 51 भाग जहां गिरे वहां पर पवित्र शक्ति पीठ की स्थापना हुई। सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर स्थान पर माता सती का सिर गिरा था इसलिये यह स्थान सिरकंडा शक्तिपीठ कहलाया जो वर्तमान में सुरकंडा माता नाम से प्रसिद्ध है।

सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर

सुरकंडा माता मंदिर में मिलता है अनोखा प्रसाद 

सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर में आप सबको लड्डू, पेड़ा और माखन-म‍िश्री का प्रसाद मिलता होगा। लेक‍िन जब आप सुरकंडा माता मंदिर में आएंगे तो आपको यहाँ कुछ अलग तरह का ही प्रसाद मिलेगा। यहां पर आने वाले भक्तो को प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां दी जाती हैं।

यह पत्तियाँ अनेक औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। ऐसी मान्‍यता है इन पत्तियों को ज‍िस भी स्‍थान पर रखा जाता है वहां हमेशा सुख-समृद्धि का वास होता है। स्‍थानीय न‍िवासी इसे देववृक्ष मानते हैं। यही कारण है क‍ि इस वृक्ष की लकड़‍ियों का प्रयोग केवल पूजा पाठ में किया जाता इसके अलावा अन्‍य कार्य में इनका प्रयोग नहीं क‍िया जाता।

सिद्वपीठ सुरकंडा माता मंदिर के कपाट पूरे वर्ष खुले रहते हैं। माता सुरकंडा देवी के इस दरबार से आप बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर और नीलकंठ सहित कई पर्वत श्रृखलाओ को देख सकते हैं। मंद‍िर के पुजारीयो के अनुसार जो भी भक्‍त सच्‍चे मन से माता सुरकंडा के दर्शन करता है। 

उसके सात जन्‍मों के सभी पाप नष्‍ट हो जाते हैं। वैसे तो सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर के दर्शन कभी भी क‍िए जा सकते हैं। लेक‍िन गंगा दशहरा और नवरात्रे ऐसे पर्व हैं जब माता के दर्शनों का विशेष महत्व माना जाता है। मान्‍यता के अनुसार देवराज इंद्र ने इसी स्थान पर जब देवी के दर्शन किये थे तो उन्हें स्वर्ग का राज्य पुनः प्राप्त हुआ था। इसकी कारण इस मंद‍िर के दर्शन करने देश के कोने-कोने से श्रद्धालुजन आते हैं। 

कैसे पहुंचें सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर

भक्तो को सिद्ध पीठ सुरकंडा माता मंदिर तक पहुँचने के लिये कद्दुखल तक जाना होगा मंदिर यहाँ से 2 किमी की दूरी पर है। कद्दूखाल मोटर योग्य सड़कों के माध्यम से जुड़ा हुआ है और यह मसूरी से 40 किलोमीटर, धनोल्टी से 11 किमी और चंबा से 22 किलोमीटर दूर है।

सड़क मार्ग से: कददुखाल मंदिर के लिए सबसे निकटतम शहर धनोल्टी जो 11 किमी और दूसरा मसूरी है जो 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोई भी यहाँ तक पहुंचने के लिये एक टैक्सी किराए पर ले सकता हैं। यहाँ पर बसें भी मसूरी से चंबा तक चलती है जो कडूखल के रास्ते होकर जाती हैं। यह स्थान मसूरी दिल्ली सहित अधिकांश उत्तरी शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

रेल द्वारा: यह स्थान देहरादून रेलवे स्टेशन से 67 किमी की दूरी पर स्थित है। जहां से आप सीधे सुरकंडा माता मंदिर के लिए टैक्सी बुक कर सकते हैं।

वायु द्वारा: सबसे निकटतम हवाई अड्डा देहरादून जॉली ग्रांट है जो सुरकंडा माता मंदिर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह दिल्ली से दैनिक उड़ानों के माध्यम से जुड़ा हुआ है और यहाँ से सुरकंडा माता मंदिर के लिए टैक्सी आसानी से उपलब्ध होती हैं।