अहोई अष्टमी व्रत मुख्यत उत्तर भारत मे मनाया जाता है। हमारा देश भारत त्योहारों का देश है यहाँ हर राज्य और प्रान्त में अपनी-अपनी संस्कृति के हिसाब से त्योहारों को मानते है और यही इस देश की सबसे बड़ी खूबसूरती है। इन सब त्योहारों में एक त्यौहार है अहोई अष्टमी का व्रत जो कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत के दिन विशेष रूप से मां पार्वती और अहोई माता का पूजन किया जाता हैं। यह त्यौहार करवाचौथ के चार दिन बाद आने वाली अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। पुरे दिन महिलाएं बिना अन्न और जल ग्रहण किए रहती हैं और शाम को तारों को जल अर्पित करने के बाद अपने अहोई अष्टमी व्रत को खोलती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत का क्या महत्व है?
कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को ही अहोई अष्टमी व्रत किया जाता है, और अहोई माता व्रत की कथा को सुना जाता है। इस दिन शाम के समय दीवार पर अहोई माता की तस्वीर या आठ कोनों वाली एक मूर्ति को बनाया जाता है। इसी मूर्ति के पास ही स्याउ माता व उसके बच्चो की आकृति को बनाया जाता हैं।
शाम के समय अहोई माता का पूजन करके तारों को अर्घ्य दिया जाता है फिर उसके बाद ही महिलाये भोजन को ग्रहण करती है। अहोई अष्टमी व्रत को लेकर यह मान्यता है की इसके प्रभाव से संतान की आयु लंबी होती है। आइये इस “लेख अहोई अष्टमी व्रत क्या है और इस व्रत की कथा” के माध्यम से जानते हैं अहोई अष्टमी का व्रत का महत्व, इसकी धार्मिक मान्यताएं, जो आप जानना चाहते है।
अहोई अष्टमी व्रत क्या है? What is Ahoi Ashtami Vrat?
अहोई अष्टमी व्रत के दिन सभी माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और उसकी उन्नति के लिये सूर्योदय से लेकर शाम तक उपवास रखती हैं। इस व्रत में शाम के वक्त आकाश में तारों को देखने के बाद ही व्रत को तोड़ने का विधान है। हालांकि कुछ महिलाएं चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत को तोड़ती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत के दिन चन्द्रमा के दर्शन में थोड़ी सी परेशानी होती है, क्योंकि इस की रात को चन्द्रमा का उदय थोड़ी देर से होता है। कुछ नि:संतान महिलाएं भी संतान प्राप्ति की कामना से इस अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं।
शास्त्रों में कार्तिक मास का काफी महत्व है और इसकी महत्ता का वर्णन पद्मपुराण में भी किया गया है। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि इस महीने में प्रत्येक दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने, गायत्री मंत्र का जप करने तथा सात्विक भोजन करने से महापाप का भी नाश हो जाता है।
इसलिए इस माह में आने वाले सभी व्रतो का विशेष फल होता है और यही कारण है कि इस माह मनाये जाने वाली अहोई अष्टमी व्रत का भी काफी अधिक महत्व है। यह पर्व किसी भी तरह की अनहोनी से बचाने वाला है।
अहोई अष्टमी व्रत की कथा क्या है? What is the story of Ahoi Ashtami fasting?
अहोई अष्टमी व्रत की कथा इसप्रकार है, प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहा करता था। उसके सात पुत्र थे। एक दिन साहूकार की पत्नी दीपावली से एक दिन पहले घर की लीपापोती करने के लिये मिट्टी लेने जंगल में चली गई और कुदाल से मिट्टी को खोदने लगी। दैवयोग से जिस जगह वह मिट्टी को खोद रही थी उस जगह एक सेह की मांद थी।
मिट्टी खोदते हुऐ अचानक उस स्त्री के हाथ से कुदाल उस सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का वह बच्चा तुरंत ही मर गया। अपने हाथ से हुई सेह के बच्चे की हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी बहुत दुखी हुई परन्तु अब क्या हो सकता था। जो होना था वह हो चूका था इसलिये वह शोकाकुल हो पश्चाताप करती हुई अपने घर को लौट आई।
इसके कुछ दिनों बाद उसका सबसे पहले पुत्र का निधन हो गया। फिर उसके बाद दूसरे, तीसरे और इस प्रकार एक ही वर्ष में उसके सभी पुत्र मर गए। वह महिला बहुत दुखी और व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपना यह दुःख अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को बताया कि उसने कभी भी जानबूझ कर कोई पाप नहीं किया है फिर भी उसे यह कष्ट भोगना पड़ रहा है। हाँ, उससे एक बार मिट्टी खोदते हुए धोखे से उसके हाथों द्वारा एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई थी शायद इसीलिये उसके सभी सातों पुत्रो की मृत्यु हो गई है।
उसकी इस बात को सुनकर उसके पड़ोस में रहने वाली वृद्ध महिला ने साहूकार की पत्नी को ढांढस देते हुए कहा कि तुम्हारे इस प्रकार पश्चाताप करने से ही तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। इसलिये तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण में जाकर उस सेह और उसके बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो तथा अहोई अष्टमी व्रत करो और उनसे अपने कर्म के लिये क्षमा-याचना करो। इससे माता तुम पर अवश्य कृपा करेगी और तुम्हारा पाप धुल जाएगा।
तब साहूकार की पत्नी ने उस वृद्ध महिला की बात को मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी व्रत किया और पूजा-अर्चना की। इस तरह वह हर वर्ष नियमित रूप से इसी प्रकार व्रत और पूजा करने लगी। उसके इस प्रकार व्रत और पूजन से पुनः उसे सात पुत्रो की प्राप्ती हुई। तभी से ही कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई व्रत करने की परम्परा प्रचलित हो गई।
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