कुंडलिनी जागरण से शरीर के सातो चक्र कैसे जाग्रत करें?

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कुंडलिनी जागरण

कुंडलिनी जागरण क्या है और हम अपने शरीर के सातो चक्र कैसे जाग्रत करें? आइये इसे समझते है, सृस्टि के प्रारंभ से ही मनुष्य उसके रहस्य को जानने का प्रयत्न कर रहा है। वास्त्विकता मे वो सृस्टि को जानने की अपेक्षा उस पर अपना नियंत्रण करना चाहता है। उसका यही प्रयास उसे सृस्टि की सृजनात्मक शक्ति के विपरीत विध्वंसनात्मक शक्ति की और अग्रसर कर देता है। ईश्वर की इस सृस्टि का रहस्य तो मनुष्य के अंतर मे ही छुपा हुआ है।

इस सृस्टि का मूल तत्व तो मानव स्वयं ही है, क्योकि हमारा शरीर उन्ही पंच तत्वों का बना हुआ है, जिन पर यह सृस्टि आधारित है। सृस्टि पर नियंत्रण तभी संभव है जब हम स्वयं पर नियंत्रण कर लेते है। जब मनुष्य अपनी आंतरिक शक्तियों को जाग्रत कर (कुंडलिनी जागरण) स्वयं को अपने पूर्ण नियंत्रण मे ले लेता है, तब यह सृस्टि स्वतः ही उसके अधीन होकर कार्य करने लगती है। आंतरिक शक्तियों का पूर्ण जाग्रत होना ही मनुष्य को पूर्ण सिद्ध की उपाधि प्रधान करता है।

कुंडलिनी जागरण क्रिया क्या है? What is Kundalini Awakening Kriya? 

हमारे शास्त्रों मे कुंडलिनी जागरण और अनेको सिद्धियों का विस्तृत विवरण है। जिन्हे आध्यात्मिक चिंतन और योगा अभ्यास के द्वारा सहज ही प्राप्त किया जा सकता है। निरंतर ध्यान और योग साधना इतनी प्रभावी होती है, जिसके प्रभाव से कोई भी साधरण पुरुष दिव्यता को प्राप्त कर लेता है। लगातार ध्यान व योग के अभ्यास से शांत चित्त और परमात्मा की प्राप्ति होती है।

अधिकांश लोग कुंडलिनी जागरण के बारे में तो जानते हैं, लेकिन ये नहीं जानते हैं कि कुंडलिनी जागरण वास्तव में होता क्या है। कुंडलिनी जागरण सामान्य घटना नहीं होती। आत्म संयम और योग नियमों का पालन करते हुए निरंतर ध्यान करने से धीरे-धीरे कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है।

कुंडलिनी जागरण

कुंडलिनी जागरण से सातो चक्र कैसे जाग्रत करें? How to awaken the seven chakras present in the body? 

कुंडलिनी जागरण एक दिव्य शक्ति है, जो एक कुंडली बनाकर बैठे हुए सर्प के सामान शरीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार में स्थित होती है। जब तक यह इसी प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति सांसारिक विषयों की ओर भागता रहता है। परन्तु जब यह जाग्रत होने लगती है, तो ऐसा प्रतीत होने लगता है जैसे कोई सर्पिलाकार तरंग घूमती हुई ऊपर की और उठ रही है।

यह एक बड़ा ही दिव्य अनुभव होता है। हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। कुंडलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ जब यह ऊपर की ओर गति करता है, जिसका उद्देश्य सातवें चक्र सहस्रार तक पहुंचना होता है, लेकिन यदि व्यक्ति संयम और ध्यान छोड़ देता है तो यह छोर गति करता हुआ किसी भी चक्र पर रुक सकता है।

  • मूलाधार चक्र 

यह गुदा और लिंग के बीच स्थित चार पंखुरियों वाला आधार चक्र है। आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। यहाँ वीरता और आनन्द भाव का निवास होता है । 99.9%  लोगों की चेतना इसी चक्र तक ही सिमित रहती है और वे इसी चक्र में ही रहकर मर जाते हैं। मनुष्य जब तक पशुवत है, तब तक वह इसी चक्र में जीता रहता है। जिसके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उसकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।

  • स्वाधिष्ठान चक्र 

इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र जो लिंग मूल में स्थित होता है। यह छ: पंखुरियों वाला होता हैं। इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो जाए तभी समस्त सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।

  • मणिपुर चक्र

नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो दस दल कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने पर तृष्णा, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि का नाश हो जाता है।

  • अनाहत चक्र

हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित यह चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। यदि यह सोता रहे तो वह व्यक्ति लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिंता , मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा। इसके जागरण होने पर यह सब दुर्गुण नष्ट  हो जाते है। 

  • विशुद्ध चक्र

कण्ठ में विशुद्ध चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुरियों वाला है। यहां सोलह कलाएं और सोलह विभूतियां विद्यमान है। यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है, तो आप अति शक्तिशाली व्यक्ति होंगे। इसके जाग्रत होते ही सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है, तथा इसके प्रभाव से भूख,  प्यास और मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

  • आज्ञाचक्र

भूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है, यहां  हूं, फट, विषद, स्वधा, स्वहा, सप्त स्वर आदि का निवास है। यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।

  • सहस्रार चक्र 

सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता और वह परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है, जो मोक्ष का द्वार है।

अंत मे निष्कर्ष  

कुंडलिनी जागरण एक योगिक किय्रा है, जो निरंतर साधना और आध्यात्मिक ध्यान के द्वारा शरीर मे स्थित सातो चक्रो को जाग्रत करने की प्रकिर्या है। जिसे इस लेख “कुंडलिनी जागरण: हमारे शरीर के सातो चक्र” के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है। यह सधना किसी योग्य गुरु के नियंत्रण मे ही प्रारंभ करनी चाहिये। अगर इस किर्या मे साधक कोई भी असावधानी करता है, तो इसके विपरीत असर देखने को मिलते है।