व्यापार घाटा क्या है और इससे किसी देश की अर्थवयवस्था कैसे प्रभावित होती है। वैसे व्यापार घाटा किसी भी देश के निर्यात और आयात करने की क्षमता पर निर्भर करता है, इसका सीधा जुड़ाव उस देश की अर्थव्यवस्था के विकास से होता है।
व्यापार घाटा को ऐसे देख सकते है की अगर आयात बढ़ता है, तो निर्यात कम होता है, और अगर निर्यात बढ़ता है, तो आयात कम होता है। इसलिए यह दोनों ही रूपों में अर्थवयवस्था पर असर डालता है। व्यापार घाटा को कम करने के लिए हर देश की कोशिश होती है, कि वह देश में आयात और निर्यात के बीच संतुलन को बनाये रखे।
अर्थवयवस्था को मजबूत करने के लिये व्यापार घाटा को संतुलित रखना प्रत्येक देश की यह प्राथमिकता होती है, यदि नागरिकों के लिये ज्यादातर वस्तुएं देश में ही स्थित कम्पनियों के माध्यम से मिल जाये तो उसे विदेशी वस्तुओं को कम खरीदना पड़ेगा और इससे आयात कम करना पड़ेगा।
व्यापार घाटे का सीधा प्रभाव देश की आर्थिक स्थिति विशेषकर चालू खाते, रोजगार सृजन, विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर पड़ता है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि किसी देश का व्यापार घाटा लंबे समय तक बना रहता है, तो इसका उस देश की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, विशेषकर रोजगार सृजन, विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर।
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व्यापार घाटा क्या है?
What is trade deficit in hindi
किसी भी देश का वयापार घाटा उस देश के आयात और निर्यात के अंतर पर निर्भर करता है, अर्थशास्त्र में आयात और निर्यात के संतुलन को वयापार संतुलन कहते हैं। लेकिन जब कोई देश निर्यात करने की तुलना में आयात को अधिक करने लगता है, तो उस स्थिति को वयापार घाटा (ट्रेड डेफिसिट) कहाँ जाता हैं।
व्यापार घाटा का सीधा मतलब यह होता है, कि वह देश अपने यहां नागरिको की जरूरतो को पूरा करने के लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन नहीं कर पा रहा है, इसलिए उसे इन जरूरतों को पूरा करने के लिये दूसरे देशों से वस्तुओ और सेवाओं का आयात करना पड़ रहा है। लेकिन इस स्थिति के उलट जब कोई देश आयात करने की तुलना में निर्यात को अधिक करता है, तो उसे व्यापार बढ़ोतरी (ट्रेड सरप्लस) कहते हैं।
व्यापार घाटा को लेकर भारत की दूसरे देशो के साथ वायापरिक स्थिति
अगर हम भारत में वयापार बढ़ोतरी (ट्रेड सरप्लस) की बात करें तो अमेरिका के साथ हमारा ट्रेड सरप्लस सर्वाधिक (21 अरब डॉलर) है। इसका अर्थ यह है, कि हमारा देश अमेरिका से आयात कम और वहाँ निर्यात ज्यादा करता है।
इसलिये भारत और अमेरिका इन दोनों देशो का झुकाव द्विपक्षीय व्यापार संतुलन की ओर है। अगर हम इसे सीधे और सरल शब्दों में कहें तो अमेरिका से व्यापार की स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अनुकूल है। इसी तरह बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, हांगकांग, नीदरलैंड, पाकिस्तान, वियतनाम और श्रीलंका जैसे देशों के साथ भी भारत का ट्रेड सरप्लस है।
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व्यापार घाटा का अर्थवयवस्था पर असर
Impact of trade deficit on the economy
अर्थशास्त्रियों का यह मत है, कि यदि किसी देश का व्यापार घाटा कई सालो तक लगातार कायम रहता है, तो उस देश की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो जाती है, इसका सीधा और नकारात्मक असर रोजगार सृजन, विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर पड़ता है।
व्यापार घाटे का नकारात्मक असर चालू खाते के घाटे पर भी पड़ता है, चालू खाते में एक बड़ा हिस्सा व्यापार संतुलन के लिये होता है। इसीलिये जब व्यापार घाटा बढ़ता है, तो इसके साथ चालू खाते का घाटा भी बढ़ जाता है। चालू खाते का घाटा देश में विदेशी मुद्रा के आने और बाहर जाने के अंतर को दिखता है। विदेशी मुद्रा निर्यात के द्वारा ही अर्जित की जाती है, जबकि आयात करने से देश की मुद्रा बाहर जाती है।
व्यापार घाटा पर भारत का ट्रेड बैलेंस
भारत मुख्य रूप से खनिज ईंधन, तेल, मोम, बिटुमिनस (Bituminous) पदार्थ, मोती, कीमती व अर्ध-कीमती पत्थरों और गहनों के मजबूत आयात में लगातार वृद्धि के कारण 1980 से निरंतर व्यापार घाटे को दर्ज़ कर रहा है। हाल के वर्षों में, चीन, स्विट्जरलैंड, सऊदी अरब, इराक और इंडोनेशिया के साथ सबसे बड़ा व्यापार घाटा दर्ज किया गया, साथ ही भारत ने अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, हांगकांग, यूनाइटेड किंगडम और वियतनाम के साथ व्यापार बढ़ोतरी (ट्रेड सरप्लस) को रिकॉर्ड किया है।
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