Uniform Civil Code बिल क्या है और UCC की आवश्यकता क्यों है?

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Uniform Civil Code

यूनिफार्म सिविल कोड बिल क्या है? (Uniform Civil Code Bill in hindi) आज हम इस विषय पर बात करेंगे, भारतीय संविधान के आर्टिकल 44 के तहत परिभाषित समान नागरिक संहिता कानून यानि Uniform Civil Code (UCC) जिसे भारत के नागरिकों के लिए सुरक्षित करना राज्य का कर्तव्य माना गया है। यूनिफार्म सिविल कोड बिल का उद्देश्य “एक राष्ट्र- एक कानून” की ओर है। व्यक्तिगत कानून सार्वजनिक कानून से अलग हैं और विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने और रखरखाव को कवर करते हैं।

विषय सूची

यूनिफार्म सिविल कोड बिल को लेकर बहस शाह बानो मामले से शुरू हुई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने Uniform Civil Code Bill को लागू करने का आह्वान किया, तभी यूनिफार्म सिविल कोड बिल क्या है इस पर चर्चा शुरू हुई इस विशेष मामले में, तलाक के बाद शाह बानो को उनके पूर्व पति ने गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था की, “एक समान नागरिक संहिता कानून परस्पर विरोधी विचारधारा वाले कानूनों के प्रति असमान वफादारी को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य में मदद करेगी।”

सुप्रीम कोर्ट के प्रयासों को राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने विफल कर दिया था, जिसने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 को पार्लियामेंट में पारित किया और महिला मुसलमानों के अधिकारों को और अधिक प्रतिबंधित कर दिया। इसके बावजूद यह मामला यूनिफार्म सिविल कोड बिल समर्थकों के लिए ऐतिहासिक मिसाल साबित हुआ।

भारत जैसे विषम राष्ट्र में, जहाँ नागरिकों में विभिन्न धर्म, जातिया और संस्कृतिया शामिल हैं वही यूनिफार्म सिविल कोड बिल (Uniform Civil Code Bill) क्या है और इसकी भारत में आवश्यकता क्यों है इसे समझना होगा। और जैसा कि हमारे संविधान में भी यह निहित है, कि एक समान नागरिक संहिता को धीरे-धीरे मौजूदा रीति-रिवाजों के उत्तराधिकार के रूप में लागू किया जाए जो धर्म, जाति और लिंग विविधता के लिए एक समान हो, जो सभी के लिए समान नियमों और विनियमों के एक समान सेट में लागु किया जाये। 

यूनिफार्म सिविल कोड बिल (यूसीसी) क्या है? Uniform Civil Code Bill (UCC) in Hindi. 

यूनिफार्म सिविल कोड बिल का अर्थ है कि समाज के सभी वर्गों को उनके धर्म के बावजूद राष्ट्रीय नागरिक संहिता के अनुसार समान रूप से माना जाएगा, जो सभी पर समान रूप से लागू होगा। यह संपत्ति, विवाह, तलाक, रखरखाव, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों को कवर करता हैं। यह इस आधार पर आधारित है कि आधुनिक सभ्यता में धर्म और कानून के बीच कोई संबंध नहीं है। यही यूनिफार्म सिविल कोड बिल का संक्षेप रूप है।

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यही समान नागरिक सहिंता कानून (Uniform Civil Code Bill in hindi) की मुख्य रुपरेखा है।

अनुच्छेद 44 क्या है? What is Article 44 in hindi?

अनुच्छेद 44 क्या है, आर्टिकल 44 राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से मेल खाता है जिसमें कहा गया है कि राज्य अपने नागरिकों के लिए भारत के पूरे क्षेत्र में एक समान नागरिक संहिता यानिकि Uniform Civil Code (UCC) प्रदान करने का प्रयास करेगा।  

यूनिफार्म सिविल कोड बिल पर बहस (Debate on Uniform Civil Code Bill)

ऐतिहासिक परिदर्शय – यूनिफार्म सिविल कोड बिल (Uniform Civil Code Bill) क्या है यह बहस भारत में Colonial Period से चली आ रही है।

  • प्री इंडिपेंडेंस काल 

अक्टूबर 1840 की लेक्स लोकी रिपोर्ट- इस रिपोर्ट में अपराधों, साक्ष्य और अनुबंध से संबंधित भारतीय कानून के संदर्भ में यूनिफॉर्मिटी के महत्व और इसकी आवश्यकता पर बल दिया गया था। लेकिन, इसमें यह भी सिफारिश की गई थी, कि हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस तरह के संदर्भ से बाहर रखा जाना चाहिए।

महारानी की 1859 की उद्घोषणा- इस उद्घोषणा में धार्मिक मामलों के संदर्भ में पूर्ण रूप से हस्तक्षेप न करने का वादा किया गया।

इसलिए जब आपराधिक कानूनों को बनाया गया और इन्हें पूरे देश में लागु किया गया, तब भी व्यक्तिगत कानूनों को विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग कोड के द्वारा नियंत्रित किया जाता था।

  • पोस्ट इंडिपेंडेंस काल 

संविधान के रचना के दौरान, जवाहरलाल नेहरू और डॉ बीआर अंबेडकर जैसे प्रमुख नेताओं ने यूनिफार्म सिविल कोड बिल (Uniform Civil Code Bill) के लिए जोर दिया। हालांकि, उन्होंने मुख्य रूप से धार्मिक कट्टरपंथियों के विरोध और समय के अनुसार जनता के बीच जागरूकता की कमी के कारण स्टेट पॉलिसी के निदेशक सिद्धांतों (DPSP, Article 44) में UCC को शामिल किया।

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पोस्ट इंडिपेंडेंस के कुछ सुधार इस प्रकार थे:-

हिंदू कोड बिल- इस बिल का मसौदा डॉ बीआर अंबेडकर ने हिंदू कानूनों में सुधार के लिए तैयार किया था, जिसने तलाक को क़ानूनी रूप दिया, बहुविवाह का विरोध किया, बेटियों को विरासत का अधिकार दिया। इसमें चार अलग-अलग कानूनों के माध्यम से एक Diluted Version को पारित किया गया था।

उत्तराधिकार अधिनियम- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, मूल रूप से बेटियों को पैतृक संपत्ति में विरासत का अधिकार नहीं देता था। वे केवल एक संयुक्त हिंदू परिवार से भरण-पोषण का अधिकार मांग सकती थी। लेकिन इस असमानता को 9 सितंबर, 2005 को अधिनियम में एक संशोधन द्वारा हटा दिया गया।

  1. हिन्दू मैरिज एक्ट 
  2. माइनॉरिटी एंड गार्जियनशीप एक्ट 
  3. एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 

स्पेशल मैरिज एक्ट: यह अधिनियम 1954 में पारित किया गया था जो किसी भी धार्मिक व्यक्तिगत कानून के बाहर किसी भी सिविल मैरिज को क़ानूनी वैधता प्रदान करता है।

यूनिफार्म सिविल कोड से सम्बंधित न्यायिक मामले (Uniform civil code related Judicial matters)

यूनिफार्म सिविल कोड बिल क्या है और भारत में UCC की आवश्यकता को लेकर कई ऐसे अवसर आये है जब यह चर्चा का विषय बना है। UCC (Uniform Civil Code in hindi) को लेकर पिछले कुछ वर्षो में ऐसे मामले सामने आये है जब उच्च न्यायलय ने यूनिफार्म सिविल कोड बिल को लेकर अपनी राय को वयक्त किया है तथा इस विषय में अपनी स्थिति से सरकार को अवगत कराया है।
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  • शाह बानो केस (1985)

शाह बानो नाम की एक 73 वर्षीय महिला को उसके पति ने ट्रिपल तलाक (तीन बार “मैं तुम्हें तलाक देता हूं” कहकर) तलाक दे दिया था और उसे भरण-पोषण के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। उसने अदालतों और जिला न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और उच्च न्यायालय ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया। इसके कारण उसके पति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करते हुए कहा कि उसने इस्लामी कानून के तहत अपने सभी दायित्वों को पूरा किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में अखिल भारतीय आपराधिक संहिता के “पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के रखरखाव” प्रावधान (धारा 125) के तहत शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया, जो धर्म के बावजूद सभी नागरिकों पर लागू होता है। इसके बाद न्यायलय ने यह सिफारिश की कि एक समान नागरिक संहिता कानून को स्थापित किया जाए।

शाह बानो मामले से जुड़े तथ्य:

1.) मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत गुजारा भत्ता इद्दत की अवधि तक ही देना होता था। (तीन चंद्र महीने-लगभग 90 दिन)।

2.) सीआरपीसी की धारा 125 (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) जो सभी नागरिकों पर लागू होती है, पत्नी के भरण-पोषण के लिए प्रदान की जाती है।

3.) इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद राष्ट्रव्यापी चर्चा, बैठकें और आंदोलन हुए। दबाव में तत्कालीन सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला (तलाक पर सुरक्षा का अधिकार) अधिनियम (MWA) को पारित किया, जिसने मुस्लिम महिलाओं के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 को अनुपयुक्त बना दिया।

  • डेनियल लतीफी केस

इस केस में मुस्लिम महिला अधिनियम (MWA) को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता के अधिकार के साथ-साथ अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को संवैधानिक मानते हुए, इसे सीआरपीसी की धारा 125 के साथ इसका सामंजस्य स्थापित किया।

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सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि इद्दत की अवधि के दौरान पत्नी द्वारा प्राप्त राशि इतनी बड़ी होनी चाहिए कि वह इद्दत के दौरान उसका भरण-पोषण कर सके और साथ ही उसके भविष्य के लिए भी प्रदान कर सके। इस प्रकार, भूमि के कानून के तहत, एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला जीवन भर या जब तक वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती, भरण-पोषण के प्रावधान की हकदार है।

  • सरला मुद्गल केस

इस मामले में सवाल यह था कि क्या हिंदू कानून के तहत शादी करने वाला हिंदू पति इस्लाम धर्म अपनाकर दूसरी शादी कर सकता है। अदालत ने माना कि हिंदू कानून के तहत हिंदू विवाह को केवल हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत निर्दिष्ट किसी भी आधार पर भंग नहीं किया जा सकता है। 

इस्लाम में धर्मांतरण और फिर से शादी करना, अधिनियम के तहत हिंदू विवाह को भंग नहीं करेगा और इस प्रकार, इस्लाम में परिवर्तित होने के बाद दूसरी शादी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 494 के तहत अपराध होगी।

  • जॉन वल्लमट्टम केस

इस मामले में, केरल के एक पुजारी, जॉन वल्लमट्टम ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 118 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी, जो भारत में गैर-हिंदुओं के लिए लागू है। श्री वल्लमटन ने तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 118 ईसाइयों के खिलाफ भेदभावपूर्ण थी क्योंकि यह उनकी इच्छा से धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संपत्ति के दान पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है। न्यायालय पीठ ने इस धारा को असंवैधानिक करार दिया था।

यूनिफार्म सिविल कोड बिल और उससे सम्बंधित विवाद (Uniform Civil Code Bill and its related disputes) 

(Uniform Civil Code Bill) यूनिफार्म सिविल कोड बिल के बारे में विवादों को उठाने से पहले यह समझना आवश्यक है कि यूनिफार्म सिविल कोड बिल क्या है (What is Uniform Civil Code Bill in hindi)। समान नागरिक संहिता, कानून का वह हिस्सा है जो किसी व्यक्ति के परिवारिक मामलों से संबंधित है और सभी नागरिकों के लिए कानूनों में यूनिफॉर्मिटी को निर्धारित करता है, चाहे उसका धर्म, जनजाति या जाति कुछ भी हो। UCC भारतीय संविधान के आर्टिकल 44 में अंकित है जो कि कॉन्स्टिट्यूशन ड्राफ्ट में आर्टिकल 35 था।

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यूनिफार्म सिविल कोड बिल (Uniform Civil Code Bill) भारतीय संविधान के भाग 4 में निहित है और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से भी संबंधित है। और चूंकि ये गैर-न्यायिक अधिकार हैं, इसलिए इन्हें अदालतों में लागू नहीं किया जा सकता है। अब समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के कारण होने वाले विवादों पर आते हैं, भारत में आम लोगों के बीच सांप्रदायिक संघर्षों का मुख्य कारण पर्सनल लॉ हैं। 

यूनिफार्म सिविल कोड बिल (Uniform Civil Code Bill) क्या है यह एक समान विधि या एक स्टैण्डर्ड लॉ है जो नागरिकों को एक समान कानून के रूप में नियंत्रित करता है। पूरे भारत में UCC को लागु करने के साथ एक समस्या यह है कि यह समानता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जा सकता है जो संविधान के मौलिक अधिकारों में से एक है क्योंकि लोगों के एक निश्चित वर्ग को पर्सनल लॉ प्रदान करके हम धर्मनिरपेक्ष की विश्वसनीयता का निर्धारण कर रहे हैं।

(Uniform Civil Code Bill) यूनिफार्म यूनिफार्म सिविल कोड बिल लागु होने से स्टेट पॉलिसी में राज्य को धर्म से अलग करना सार्थक हो जाएगा क्योंकि UCC लागू होने पर पर्सनल लॉ का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। पर्सनल लॉ कई सांप्रदायिक संघर्षों को जन्म देते हैं जो देश को नुकसान पहुंचाते हैं उदाहरण के लिए धार्मिक उन्माद यह दर्शाता है कि भारत अभी भी एक समान नागरिक संहिता के लिए तैयार नहीं है और यह संविधान के आर्टिकल 25 के खिलाफ भी जाता है।

जो लोग शादी, तलाक, विरासत और इस तरह की किसी भी रस्म के लिए यूनिफार्म सिविल कोड के खिलाफ बहस करते हैं, वे खुद भारतीय संविधान के आर्टिकल 26 (B) के खिलाफ बात करते हैं जिसमें कहा गया है कि: “सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, प्रत्येक धार्मिक वर्चस्व या उसके किसी भी वर्ग को धर्म के मामलों में अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार होगा”।

चूंकि समान नागरिक संहिता कानून (Uniform Civil Code Bill) इस आर्टिकल का उल्लंघन होगी, इसलिए भारतीय संविधान के आर्टिकल 25 और आर्टिकल 26 के तहत निहित प्रावधानों के कारण न्यायपालिका यूनिफार्म सिविल कोड बिल को लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती है, वास्तव में इस मुद्दे पर पहले ही व्यापक बहस हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में और आर्टिकल 25 और 26 के कारण, यह सफल नहीं हो पाया।

यूनिफार्म सिविल कोड बिल गोवा में लागु है (Uniform Civil Code Bill is applicable in Goa) 

गोवा एकमात्र भारतीय राज्य है जिसके पास सामान्य परिवार कानून के रूप में यूनिफार्म सिविल कोड बिल क्या है। यहाँ पुर्तगाली नागरिक संहिता आज भी लागू है, जो 19वीं शताब्दी में गोवा में लागू की गई थी और इसकी स्वतंत्रता के बाद भी इसे प्रतिस्थापित नहीं किया गया।

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गोवा यूनिफार्म सिविल कोड की विशेषताएँ- (Features of Uniform Civil Code in hindi)

1.) गोवा में यूनिफार्म सिविल कोड (Uniform Civil Code Bill) एक प्रगतिशील कानून है जो पति और पत्नी के बीच और बच्चों के बीच आय और संपत्ति के समान विभाजन की अनुमति को देता है (लिंग की परवाह किए बिना)।

2.) प्रत्येक जन्म, विवाह और मृत्यु का पंजीकरण अनिवार्य रूप से करना होगा। तलाक के लिए कई प्रावधान हैं।

3.) जिन मुसलमानों की शादी गोवा में पंजीकृत है, वे तीन तलाक के माध्यम से बहुविवाह या तलाक के पर्सनल लॉ को इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।

4.) विवाह के दौरान, प्रत्येक पति या पत्नी के अधिकार या उनके द्वारा अर्जित की गई सभी संपत्ति पर विवाह के बाद दोनों का समान अधिकार होगा।

5.) तलाक के मामले में प्रत्येक पति या पत्नी, संपत्ति के आधे हिस्से का हकदार है और मृत्यु के मामले में, जीवित सदस्य के लिए संपत्ति का स्वामित्व आधा हो जाता है।

6.) माता-पिता अपने बच्चों को पूरी तरह से बेदखल नहीं कर सकते। उन्हें संपत्ति का कम से कम आधा हिस्सा बच्चों को देना होता है। तथा विरासत में मिली संपत्ति को बच्चों के बीच समान रूप से साझा की जानी चाहिए।

हालांकि, इस कानून में कुछ कमियां हैं और पूरी तरह से एक समान कानून नहीं है। उदाहरण के लिए, हिंदू पुरुषों को विशिष्ट परिस्थितियों में दूसरा विवाह करने का अधिकार है (यदि पत्नी 25 वर्ष की आयु तक बच्चे को जन्म देने में विफल रहती है, या वह 30 वर्ष की आयु तक एक पुरुष बच्चे को जन्म देने में विफल रहती है), जो गोवा के अन्यजाति हिंदुओं के उपयोग और रीति-रिवाजों में उल्लिखित है। अन्य समुदायों के लिए, इस कानून में बहुविवाह को प्रतिबंधित किया गया है।

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यूनिफार्म सिविल कोड बिल के फ़ायदे और नुक़सान (Advantages and Disadvantages of Uniform Civil Code Bill in hindi)

यूनिफार्म सिविल कोड बिल क्या है यहाँ तक आप इसके प्रारूप को समझ गये होंगे की भारत में यूसीसी क्यों आवश्यक है अब यूसीसी के फ़ायदे और नुकसान को जानते है। 

1.) UCC भारत को एक करेगा, भारत कई धर्मों, रीति-रिवाजों और प्रथाओं वाला देश है। यूनिफार्म सिविल कोड बिल स्वतंत्रता के बाद से भारत को पहले से कहीं अधिक एक करने में मदद करेगा। यह प्रत्येक भारतीय को उसकी जाति, धर्म या जनजाति के बावजूद, एक राष्ट्रीय नागरिक आचार संहिता के तहत लाने में मदद करेगा।

2.) UCC वोट बैंक की राजनीति को कम करने में भी मदद करेगा, जिसका प्रयोग अधिकांश राजनीतिक दल हर चुनाव के दौरान करते हैं।

3.) पर्सनल लॉ एक बचाव का रास्ता हैं, पर्सनल लॉ को अनुमति देकर हमने एक वैकल्पिक न्यायिक प्रणाली का गठन किया है जो अभी भी हजारों साल पुराने मूल्यों पर काम करती है। यूनिफार्म सिविल कोड बिल इसे बदल देगा।

4.) एक आधुनिक प्रगतिशील राष्ट्र का संकेत यह है कि वह राष्ट्र जाति और धार्मिक राजनीति से दूर हो गया है। जहां हमारा आर्थिक विकास सबसे महत्वपूर्ण है, वहीं हमारा सामाजिक विकास पिछड़ गया है। UCC समाज को आगे बढ़ने में मदद करेगा और भारत को सही मायने में विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य की ओर ले जाएगा।

5.) UCC महिलाओं को अधिक अधिकार देगा क्योकि रिलीजियस पर्सनल लॉ की प्रकृति स्त्री विरोधी हैं और पुराने धार्मिक नियमों को अनुमति देकर भारतीय महिलाओं की अधीनता और दुर्व्यवहार का समर्थन कर रहे हैं। एक समान नागरिक संहिता भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में भी मदद करेगी।

6.) सभी भारतीयों के साथ एक समान व्यवहार होना चाहिए विवाह, उत्तराधिकार, परिवार, भूमि आदि से संबंधित सभी कानून सभी भारतीयों के लिए एक समान होने चाहिए। यूसीसी यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि सभी भारतीयों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए।

7.) यह वास्तविक धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देता है, एक समान नागरिक संहिता कानून का मतलब यह नहीं है कि यह लोगों को उनके धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता को सीमित कर देगा, इसका मतलब यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जाएगा और भारत के सभी नागरिकों को समान कानूनों का पालन करना होगा चाहे वह किसी भी धर्म का हो।

8.) परिवर्तन प्रकृति का नियम रहा है, अल्पसंख्यक लोगों को उन कानूनों को चुनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जिनके तहत वे प्रशासित होना चाहते हैं। पर्सनल लॉ एक विशिष्ट स्थानिक संदर्भ में तैयार किए गए थे और एक बदले हुए समय में उनमे बदलाव होना चाहिए।

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9.) विशिष्ट पर्सनल लॉ के कई प्रावधान मानवाधिकारों के उल्लंघन हैं।

10.) आर्टिकल 25 और आर्टिकल 26 धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं और यूसीसी धर्मनिरपेक्षता का विरोध नहीं करता है।

11.) विभिन्न प्रकार के पर्सनल लॉ का संहिताकरण और एकीकरण एक अधिक सुसंगत कानूनी प्रणाली का निर्माण करेगा। यह मौजूदा भ्रम को कम करेगा और न्यायपालिका द्वारा कानूनों के आसान और अधिक कुशल प्रशासन को सक्षम करेगा।

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यूनिफार्म सिविल कोड बिल को लागु करने में चुनौतियाँ (Challenges in implementing the Uniform Civil Code Bill in hindi)

यूनिफार्म सिविल कोड बिल क्या है यह एक बहस का विषय है, वास्तव में सभी समुदायों को नियंत्रित करने वाले नियमों का एक सेट तैयार करने का कार्य बहुत ही कठिन और थकाऊ काम भी है, जिसके लिए व्यापक हितों और भावनाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

यूनिफार्म सिविल कोड बिल के बारे में गलत सूचनाएं   

यूनिफार्म सिविल कोड बिल के ड्राफ्ट को लेकर प्रमुख अल्पसंख्यकों का यह मानना की उन पर यूसीसी मुख्यत बहुसंख्यक विचारों को थोपने का एक तरीका है।

मुद्दे की जटिलता और संवेदनशीलता के कारण इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है।

विभिन्न धार्मिक समुदायों के अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं जो UCC की बहस को राजनीतिकरण की ओर ले जाते हैं।

यूनिफार्म सिविल कोड बिल के विरोधियों का तर्क है कि पर्सनल लॉ धार्मिक विश्वासों की सवतंत्रता हैं। उनका कहना है कि उन्हें परेशान न करना ही समझदारी है, क्योंकि इससे विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच बहुत अधिक दुश्मनी और तनाव पैदा होने का खतरा है। 

साथ ही, भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होने के नाते अल्पसंख्यकों को आर्टिकल 29 और 30 के तहत स्वयं के धर्म, संस्कृति और रीति-रिवाजों का पालन करने के अधिकार की गारंटी देता है। उनका यह तर्क है कि UCC को लागू करने से इनका उल्लंघन होगा।

यूनिफार्म सिविल कोड बिल लागू करने के लिए सुझाव (Suggestions for implementing the Uniform Civil Code Bill in hindi)

DPSP के लक्ष्यों को प्राप्त करने और कानूनों की एकरूपता बनाए रखने के लिए, निम्नलिखित सुझावों पर तत्काल विचार करने की आवश्यकता है:

  • यूनिफार्म सिविल कोड बिल की भावना को समझने के लिए लोगों के बीच एक प्रगतिशील और व्यापक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए शिक्षा, जागरूकता और संवेदीकरण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • सभी धर्मों के हितों को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार किया जाना चाहिए।
  • एकरूपता बनाए रखने के लिए प्रख्यात न्यायविदों की एक समिति गठित की जानी चाहिए और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी विशेष समुदाय की भावनाओं को ठेस न पहुंचे।
  • मामला संवेदनशील प्रकृति का होने के कारण संबंधित धार्मिक समूहों की ओर से पहल की जाए तो बेहतर होगा है।

अंत में निष्कर्ष

भारत एक “समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य” है। विविधता ही भारत का सार है, लेकिन कानून में विविधता अन्यायपूर्ण है। चूंकि यूनिफार्म सिविल कोड बिल आस्था की परवाह किए बिना सभी लोगों को एक समान प्रभावित करने वाली कानून वयवस्था को स्थापित करेगा। यह बदलाव न केवल लिंग आधारित उत्पीड़न को समाप्त करने में मदद करेगा बल्कि देश की मुख्यधारा के ताने-बाने को भी मजबूत करेगा।

समय के साथ हमारे सामाजिक ढांचे को बदलने की जरूरत है, जो हमारे मौलिक अधिकारों का विरोध करते हैं। उम्मीद है इस लेख “यूनिफार्म सिविल कोड बिल क्या है? और भारत में UCC की आवश्यकता क्यों है?” से आपको उपयोगी जानकारी मिली होगी। 

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